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कविता

राष्ट्रपति के कारण ये घोड़े महान हैं

स्वप्निल श्रीवास्तव


मुझे घोड़े अच्छे लगते हैं
वे अपनी पीठ पर पुराने दिनों को
लादकर जिंदगी की पथरीली सड़क पर
बेलाग दौड़ते हैं
उन्हें दूर से देखकर पाता हूँ कि वे
मेरी स्मृति के करीब हैं

वे मेरे न भूलने वाले दिनों में
मेरे साथ दौड़ते थे

घोड़े चारागाहों में कम
और उससे कम अस्तबलों में हैं
जो बचे हुए हैं वे
बारी बारी राष्ट्रपति की बग्घी में
नधते हैं
और राष्ट्र के इतिहास की किसी
अविस्मरणीय तारीख में दिखाई देते हैं

राष्ट्रपति के कारण ये घोड़े महान हैं
अन्यथा मुल्क की किसी गरीब सड़क पर
टूटे हुए ताँगे में जुतते और कराहते हुए
नजर आते

घोड़ों की संरचना में सबसे ज्यादा
ध्यान देने योग्य है उनकी पीठ
जिसपर तानाशाह या सामंत के चाबुक
निरंतर बरसते हैं तथा अपने
निशान छोड़ जाते हैं

घोड़ों को आपने देखा होगा
सुनसान घास के मैदान में
अपने अच्छे दिनों को चरते हुए
अपने अकेलेपन में धीमे से
हिनहिनाते हुए

उनकी हिनहिनाहट में किसी तरह की
अश्लीलता की खोज नही होनी चाहिए
हिनहिनाना उनका मूल स्वभाव है
जैसे तानाशाह की मूल प्रवृत्ति है निरंकुशता

कुछ लोग इस निरंकुशता के पक्ष में
तर्क देते हैं
यह कुछ ऐसा है जैसे कि कहा जाय
कि घोड़े चारागाह की बची हुई घास को
बचा रहे हैं

 


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